एक शक्तिशाली प्रधानमंत्री और मजबूत सरकार होने के बावजूद भी भारतिय अर्थव्यवस्था क्यों गिरती जा रही है ?
इस वक्त हमारे देश में शक्तिशाली प्रधानमंत्री जी और पूर्ण बहुतमत वाली सरकार है | इसमें कोई शक नही,लेकिन सच्चाई बहुत ज्यादा कडवी है | पिछले कुछ सालों से देश में माहौल ऐसा है कि सच्चाई कोई देखना नहीं चाहता है | जो हमारे प्रमुख मुद्दे बदल गये हैं या बदले गये हैं यह सवाल है |
आप अपने दिल पर सच्चाई से हाथ रखकर यह कहो कि आपने इस सरकार वोट क्यों दिया? 2014 में हालात कुछ और थे लेकिन मैं बात कर रहा हूँ 2019 के इलेक्शन की |
क्या जबाब आया ? कृपया सच्चाई से बताइये |
मुझे लगता है आपको जवाब मिल गया होगा कि इस इलेक्शन में हमारे मुद्दे ऐसे थे जिनका विकास और अर्थव्यस्था से कोई लेना देना नही था | जबकि हमारे पास 5 सालो का ट्रैक रिकॉर्ड था यह फैसला करने के लिए कि क्या विकास हुआ और क्या अर्थवस्था ठीक चल रही है |
मैं यह नही कह रहा हूँ कि जिन मुद्दों पे हमने वोट किया है वो सही नही थे | वो भी मूद्दे थे और रहेंगे लेकिन देश चलता है विकास और अच्छी अर्थव्यवस्था से |
जब आपके खाने को कुछ नहीं होगा तो क्या कुछ कर पाएंगे? नहीं ना!
अर्थव्यवस्था देश को मजबूत करती है , लेकिन हम किसी और दिशा की ओर चल पड़े है | आप सोच रहे होंगे कि क्या फिर दूसरी पार्टी को वोट दिया जाना चाहिए|
यह बहुत बड़ा प्रश्न है लेकिन लोकतंत्र में अगर कोई सरकार काम ना करे तो उसको लोकतांत्रिक तरीके से बाहर का रास्ता दिखाया जाता है | 2014 में यही हुआ था | लोग उस वक्त की सरकार से खुश नही थे इसलिए सरकार का परिवर्तन हो गया |
पिछले 5 सालो में चुनी हुई सरकार ने ऐसे फैसले किये जिनकी बदौलत आज देश बड़ी गम्भीर आर्थिक मंदी से जूझ रहा है | वासे आर्थिक मंदी के लिए सिर्फ सरकार के फैसले ही जिम्मेदार नहीं होते इसमें इंटरनेशनल सेंटीमेंट्स भी वजह होते है |
यह कड़वी सच्चाई है कि देश में आर्थिक संकट निम्नलिखित कारणों से हो रहा है :-
- देश की चुनी हुई सरकार में किसी एक व्यक्ति का प्रभाव: हम सब जानते है की देश के प्रमुख के पास बड़ी शक्तियाँ होती है लेकिन यह सच्चाई है कि किसी भी देश की बागडोर को चलाने के लिए एक बेहतरीन टीम का होना जरुरी है, जिससे टीम वर्क हो सके | जब टीम वर्क में काम होता है तो उसके परिणाम बेहतरीन होते है | लेकिन यहाँ उल्टा हो रहा था यहाँ बड़े बड़े फैसले बिना टीम लिए जा रहे थे या एक छोटी सी टीम यह फैसले कर रही थी | मेरा मकसद किसी पार्टी को ख़राब दिखाना नही है परन्तु देश हित की बात करना है | एक मजबूत टीम की जरूरत है ताकि सही फैसले लिए जाएँ | एक गलत फैसला देश की अर्थव्यस्था को गिरा सकता है |
- नोटबंदी: यह एक ऐसा फैसला था जिसको बोल्ड स्टेप कहा जाता है | ऐसे बोल्ड स्टेप के लिए बड़ा दिल चाहिए वो था हमारे देश के प्रमुख जी में,और उन्होंने कर दिया | लेकिन सवाल यही नही है कि वह क्या कर सकते है कि नही कर सकते है | सवाल यह है ऐसे फैसले लेने के लिए एक मजबूत टीम चाहिए थी जो देश की अर्थव्यवस्था को गंभीरता से रिसर्च करके फाइनल करे कि क्या यह फैसला सही रहेगा की नही,लेकिन सरकार ने जल्दबाजी में फैसला कर दिया | यहाँ तक कि देश के मुख्य बैंक के मुखिया को भी इसमें शामिल नही किया गया | प्रश्न यह है कि इतना बड़ा स्टेप लेने के लिए कितना रिसर्च किया गया | हमें ऐसे फैसले लेने से पहले गंभीर विचार करने की जरूरत होती है | करना तो आसान है अगर बहुमत की सरकार हो | लेकिन उसके परिणाम का सोचना उससे ज्यादा ज़रुरी है | देश के लोगो ने सहयोग किया और इस नोटबंदी में सरकार को पूरा समर्थन दिया ,यह सोच कर कि देश की इसमें बड़ी भलाई होगी | लेकिन परिणाम बहुत खतरनाक और सरकार के खिलाफ है | जो टारगेट किया गया था वो हासिल नही हुआ | इस से देश की इकॉनमी की कमर टूटी |
- GST : एक देश एक टैक्स सुनने में बड़ा अच्छा लगता है लेकिन इस फैसले ने भी देश के व्यापारियों को बहुत दुखी किया और देश कीअर्थव्यवस्था की कमजोरी का कारण बना | हमने देखा है कि gst में इतने परिवर्तन हुए है कि लोगो को समझ नही आया | टैक्स सिस्टम को सरल करने की बजाए कठिन कर दिया | टैक्स स्लैब को 28% तक रख दिया | gst रिफंड तो लोगो को मिल ही नही रहा था या लेट हो रहा था जिससे लिक्विडिटी का इश्यू खड़ा हो गया था | छोटे बिज़नस भी इससे बहुत प्रभावित हुए । gst return को इतना कठिन बना दिया कि बिज़नस करने वालो की return फाइल की कास्ट बहुत बढी | लेट फी इतनी ज्यादा कर दी जो छोटे व्यापारी को नुकसान देने वाली है | पीड़ा होती है अगर टैक्स रिफार्म इस तरह किये जाये जिससे व्यापारी ही बैठ जाएँ| कमी कहाँ रही ? कमी gst लाने में नही थी लेकिन gst को सरल की जगह कठिन बना दिया गया | यहाँ सरकार में तालमेल की कमी साफ दिखती है |यहाँ टीम वर्क नही दिखा | इतनी जल्दी क्या थी अगर इतना ख़राब gst कानून बनाना था |
- बैंक NPA : इकॉनमी में अच्छी ग्रोथ ना होने से बैंक डिफाल्टर बढे जिससे बैंक का पैसा फंस गया | बैंक का 10 लाख करोड़ से ऊपर का अमाउंट फंस गया जिससे बैंक घाटे में चले गये | सबसे ज्यादा पब्लिक सेक्टर बैंक को नुकसान हुआ | इससे अर्थव्यस्था को तकड़ा झटका लग रहा है | सरकार ने कड़े कदम नही उठाये | यह सरकार की आर्थिक नीतियों का फेलियर है |
- विदेशी निवेश : यानि इन्वेस्टमेंट, हमारे देश को बाहरी देशो से इन्वेस्टमेंट में कमी आयी और जो देश में किसी अन्य देशो के इन्कावेस्टर का जो इन्वेस्न्त्मेंट था उसको भी वापिस लिया जा रहा है | जिससे देश में आर्थिक संकट पैदा हो गया है | इस की बजह भी सरकार की ख़राब नीतियाँ रही | इतने टैक्स लगा दिए गये है इन्वेस्टर भाग रहे है |
- रुपए में गिरावट : देश का रुपया पिछले कुछ सालो से गिरता ही जा रहा है आज यह 72 के पार कर गया है | सरकार को सही कदम उठाने की जरूरत है |
- रोजगार में कमी : देश इस बक्त बहुत बड़ी समस्या से गुजर रहा है वो समस्या है बेरोजगारी | देश की सरकार रोजगार को पैदा करने के लिए पूरी तरह से विफल रही | अर्थव्यस्था चलती है अगर डिमांड हो लेकिन अगर नौकरियां नही है तो डिमांड कैसे बढ़ेगी ? सरकार को रोजगार बढाने के लिए अच्छे फैसले करने की जरूरत है |
- बूढी शिक्षा निति : देश की शिक्षा प्रणाली इतनी ख़राब है की आज के दौर में टिक नही पा रही है | हालाँकि यह इकॉनमी में बड़ा प्रभाव नही डालती परन्तु अगर शिक्षा आज की डिमांड के अनुसार हो तो सही निर्णय में सहायक होती है | लेकिन सरकार इस पर भी गंभीर नही दिख रही है |
- वैश्विक प्रभाव : बाहरी देशो की नीतियाँ भी देश की अर्थवस्था पर प्रभाव डालती है |
- अच्छी राजनीतिक इच्छा में कमी : अगर किसी देश की राजनीति में उथल पुथल हो तो उस देश की अर्थव्यवस्था सही नही हो सकती है | हमारा देश लोक तंत्र पर आधारित है | लेकिन हमारे देश की राजनीति की इच्छाशक्ति बहुत ख़राब है | यहाँ देश का विकास और अर्थव्यवस्था की सुदृढ बनाने के लिए इच्छा की कमी है | यहाँ राजनीति विकास पर नही बल्कि धर्म पर हो रही है | जिससे देश के असली मुद्दों से हटकर काम होता है जो रियल समस्याएं है वो खड़ी रहती है | हांलाकि यह भी अर्थव्यस्था पर बड़ा प्रभाव नही डालता | अगर राजनीती ख़राब होगी तो गलत फैसले लिए जायेंगे या रियल समस्याओ पर ध्यान नही दिया जायेगा|
विश्व में भारत अर्थव्यवथा में 5वे नंबर से फिसल कर 7वे नंबर पर पहुँच गया है | जो कि बहुत दुखद है | Moody's ने भी भारत की अर्थव्यवस्था के आंकड़ो में परिवर्तन किया है
सारांश :
मेरे इस विषय पर निष्कर्ष यह निकलता है कि अगर देश में मजबूत प्रधान और मजबूत सरकार हो तो देश के विकास और अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे फैसले के चांस ज्यीदा बनते है ,लेकिन अगर राजनीतिक इच्छा सिर्फ वोट बैंक हो तो मजबूत सरकार का कोई फायदा नही | अभी तक तो मजबूत सरकार फेल हुई है | जनता को सोचने की जरूरत है कि हमारा मुद्दा धर्म नही बल्कि देश का विकास और अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है | अगर हमारी अर्थव्यस्था डूबेगी तो देश में भुखमरी से जैसे हालात हो सकते है | क्यों ना हम काम ना करने वाली सरकारों को लोकतान्त्रिक तरीके से जबाब दे | हमे देश की चिंता होनी चाहिए | हमारी प्राथमिकताएं देश का विकास और अर्थव्यवस्था होनी चाहिए | 2019 के इलेक्शन का रिजल्ट बहुत हैरान करने वाला था क्योंकि वोट विकास के नाम पर नही पड़े बल्कि अन्य मुद्दों को प्राथमिकतायें दी गयी |
लेकिन अभी भी समय है एक मजबूत प्रधान और मजबूत सरकार अच्छी राजनीतिक सोच ला कर देश को आगे बढ़ाने का अवसर पा सकती है |
Source :quora
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