जनता तो आरंभ से ही विरोध में थी। आप बाद में आये। आपको ये शीर्षक कुछ अटपटा सा लग रहा होगा। परन्तु ये सत्य है और ये बात आज मुझे मेरी मित्र से बात करते हुए ही आभास हुआ। अब मेरे कुछ मित्र जिन्हें भक्त भी कहते है वो ये कहते हैं की साठ साल तक किसी ने कुछ नही बोला , बोला था भाई और बहुत बोला था। आप उस समय सुन नही रहे थे या आपको पता नही चला। और कुछ युवराज के भक्त कहते है जो भी किया हमने किया।
अब मै ज्यादा बात न करते हुए सीधे मुद्दे पे आता हूँ।
अब मै ज्यादा बात न करते हुए सीधे मुद्दे पे आता हूँ।
- जब देश आजाद हुआ तब कांग्रेस के प्रेसीडेंट के लिए १५ में से १२ प्रदेश कांग्रेस ने सरदार वल्लभ भाई का नाम दिया था ३ ने किसी का नाम नही दिया था। परन्तु गाँधी जी ने नेहरू की तरफदारी की थी और अपनी इच्छा जता चुके थे फिर भी किसी ने नेहरू का नाम नही दिया। अंतिम दिन जे. बी. कृपलानी ने नेहरू को नामित किया।
- वल्लभ भाई पटेल ने अपना नाम वापस लेकर नेहरू को प्रधानमंत्री बनने दिया क्योकि वो ७१ वर्ष के हो गए थे और कार्यालय में बैठने के बजाए देश की सेवा करना चाहते थे । नेहरू ५६ वर्ष के थे तो वो कुछ अधिक समय तक सेवा कर पाएंगे सोचकर प्रधानमंत्री बनने दिया।
- उस समय देश में कोई ज्यादा विकास नही हुआ था तो नेहरू के पास विकल्प ज्यादा थे तो जो भी किया उन्होंने सब ठीक हुआ और जनता के पास कोई विकल्प नही था।
- नेहरू के बाद लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने और आज भी उनकी मृत्यु संदेह की नजरो से देखी जाती है।
- इंदिरा ग़ांधी जी १९६६ में शास्त्री जी के बाद प्रधानमंत्री बनी और तबसे ही कांग्रेस में गुटबाजी शुरू हो गयी जो भी उनके पक्ष में नही था उसे कमजोर किया गया। दूसरी बार वो आयी तो बांग्लादेश से लड़ाई और पाकिस्तान को २ भागो में विभाजित करने की वजह से। उस समय ही इंदिरा लहर चली थी।
- तब तो विपक्ष में बैठे हुए वाजपेयी जी ने भी इंदिरा की तारीफ की थी। परन्तु उस समय इंदिरा जी ने अपने परिवार और युवाओ के नाम पे संजय और राजीव को आगे करना शुरू किया। पार्टी में भी बहुत से लोग संजय को नही पसंद करते थे। चाहे तो आप मारुति की कहानी पढ़ ले की क्या हुआ था।
- तब ही इंदिरा जी ने इमरजेंसी लगायी थी जो की आजाद भारत का आज तक का सबसे ख़राब दौर था । आपातकाल इसलिए लगाया गया था क्योकि सब उस समय भी कांग्रेस के विरोध में थे ।
- इस समय तक भी कांग्रेस के विकल्प के रूप में कोई नही था तब जाकर जनता दल का उदय हुआ और उनकी सरकार बनी। पर जनता दल में ही फूट पड़ गयी और फिर से कांग्रेस की सरकार बन गयी।
- इस समय तक भी कोई विकल्प नही था जनता के पास की कांग्रेस के अलावा किसी और को चुन ले जनता पार्टी को चुना भी तो वो अलग हो गयी। और एक सेक्युलर पार्टी बना कर कांग्रेस से जुड़ गयी।
- अब इंदिरा ग़ांधी की मृत्यु के बाद राजीव को प्रधानमंत्री बनना ही था जनता ने अभी अभी एक पार्टी से धोखा खाया था और कोई विकल्प नही था।
- राजीव ग़ांधी के फैसलो का काफी विरोध हुआ था उस समय भी और इसी का नतीजा था की उनकी मृत्यु के बाद वी पी सिंह और चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने पर क्या हुआ वही कोई विकल्प नही।
- फिर उसके बाद नरसिम्हा राव जी कांग्रेस को लेकर आ गए। और ५ साल तक रहे अब जाकर बीजेपी १९ साल की हुई (६ अप्रैल १९८० से अबतक) और अटल जी आ गए।
- पर अटल जी तो एन डी ए के गठजोड़ वाली सरकार के प्रधानमंत्री थे। तो कुछ फैसले अच्छे किये कुछ ख़राब पर अंत में वो भी महंगाई बढ़ाने , नीतिया पसंद ना आने के कारण और सोनिया के आने की वजह से चले गए।
- परन्तु मित्रो ५ साल के बाद(२००७ ) जब सोशल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इतना मजबूत हो चूका था। अगले ५ साल हर एक दूसरे चैनल पर प्रधानमंत्री का मजाक उड़ता नजर आता था। अब जनता के पास कुछ कहने के लिए एक प्लेटफॉर्म था उनका मजाक इतना बना जितना आजतक किसी प्रधानमंत्री का नही बना।
अब जनता जो की अब बहुत कुछ जानती है अब एक समीक्षक (क्रिटिक) बन चुकी है और सारी जानकारी सेकंडो में जान लेती है। उसे अब कुछ लोग कहते है ६० साल चुप थे अब भी चुप रहो। बोलते पहले भी थे अब भी बोलते है अंतर सिर्फ इतना है की पहले कम लोग बोलते थे क्योकि उन्हें ही कुछ पता होता था अब ज्यादातर लोग बोलते हैं क्योकि अब सब जानते है। आज न्यूज़ और मीडिया की पहुच हर जगह तक है। और एक अंतर ये भी है कि पहले वो किसी और को बोलते थे आज वो किसी और के लिए बोल रहे।
मेरा बस यही कहना है की आप अपने आपसी सम्बन्ध ना ख़राब करे क्योकि मैंने देखा है आजकल लोग राजनीति में अपने करीबी से लड़ते हुए दिखते हैं। राजनीति अपनी जगह है और आपसी सम्बन्ध अपनी जगह।
मेरा इस ब्लॉग को लिखने का बस इतना मतलब है की आप खुद देश के लिए कुछ करे नेताओ को अपना काम करने दे और आप जिस दिशा में जायेंगे आगे चलकर वैसा ही नेता देश को मिलेगा क्योकि नेता भी आपके बीच से ही आते हैं कही और से नही। अब मोदी को इतने लोग पसंद इसलिए कर रहे हैं क्योकि आप चाहते थे की कोई ऐसा नेता हो। तो मोदी जैसा नेता आया । हो सकता है कल आप जैसा नेता सोच रहे हैं वो किसी और पार्टी से आ जाये जिसकी नींव २ साल बाद पड़े या कोई पुरानी पार्टी वो नेता खोज लाये। लोकतंत्र की असली ताकत तो जनता होती है और नेता भी उसी जनता से आते हैं।
अंत में यही कहना चाहूंगा अपने देश को प्यार करे , आपसी सम्बन्ध मजबूत रखे और देश के विकास और मानवता के विकास में योगदान दे।
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धन्यवाद्
Well done dear.. keep it up..👌👍
जवाब देंहटाएंBAHUT hi mast reallitist thought hai aaapke, jo aapne kafi mehnat karke jankariyo ke aaddhar per prastut kiye hai.
जवाब देंहटाएंNaman hai aaapko
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